The smart Trick of baglamukhi sadhna That No One is Discussing

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मुद्गरं दक्षिणे पाशं, वामे जिह्वां च विभ्रतीम् । पीताम्बर-धरां सौम्यां, दृढ-पीन-पयोधराम् ।।

The initiation in the knowledge given via the Guru for simple, Safe and sound and protected living, which the Guru painstakingly shares being an working experience, is the main observe to accomplish that awareness-like honor and grace.

मुखी-देवतायै नमः हृदि, धर्मार्थ-काम-मोक्षेषु पाठे विनियोगाय नमः सर्वाग्ङे।

२१. श्रीजृम्भिण्यै नमः सर्व-प्रकार से विकसित होनेवाली/प्रसारित होनेवाली शक्ति को नमस्कार

The son has the best about all of the house of The daddy, nevertheless the expertise that may be enlightened only via the Guru, the son also will get it from only initiation.

श्रीशिव-ऋषये नमः शिरसि, पंक्ति:-छन्दसे नमः मुखे, श्रीबगला-

Guru must be competent. She or he shouldn't be limited to mere garments and sermons. 1 who tends to make Everybody cry and makes everyone snicker, convinces with tales; guru with such protean personalities exists everywhere you go as guru and sadguru.

आभिचारिक प्रसङ्गों में श्रीबगला विद्या की प्रधानता होने से बहुत से लोग इन्हें ‘तामसिक शक्ति’ कहते हैं। ‘कामधेनु-तन्त्र’ में तामस प्रकरण में ही इनकी गणना की गई हैं और ‘कल्याण’ के शक्ति-अङ्क के ‘दश महा-विद्या’ शीर्षक लेख में पं० मोतीलाल शर्मा ने शत्रु-निरोध में ही इस विद्या का उपयोग here लिखा है, परन्तु यह बात एक-देशीय है, प्रधानता के अभिप्राय में ही है, वास्तविक रूप से नहीं। ‘शक्ति-सङ्गम-तन्त्र’ (तारा-खण्ड) में तो

३. श्रीजम्भिन्यै नमः दुष्टों या दुवृत्तियों को कुतर-कुतर कर टुकड़े करनेवाली को नमस्कार

भगवती के ‘बगला-मुखी’ इस संज्ञा नाम की सिद्धि पर वैयाकरण लोग आपत्ति करते हैं कि यह नाम अशुद्ध है क्योंकि ‘नख-मुखात् संज्ञायाम्’ इस सूत्र से डीष्’ प्रत्यय का निषेध होकर आ-प्रत्यय होकर ‘बगला-मुखा’ ही नाम शुद्ध है, परन्तु ‘स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्’ इस सूत्राधिकार से उक्त सूत्र की प्रवृत्ति होती है। यहाँ ‘मुखी’ शब्द स्वाङ्ग-वाची नहीं है। बगला के नि:सारण में ही ‘मुख’ शब्द का प्रयोग है। ‘मुखं निःसरणम् इत्यमरः’ तथा ‘मुखमुपाये प्रारम्भे श्रेष्ठे निःसरणास्ययोः इति हैमः ‘। उपाय, प्रारम्भ, श्रेष्ठ, नि:सरण और मुख के अर्थ में ही ‘मुख

ऐं आत्म-तत्त्व-व्यापिनी-बगला-मुख्यम्बा श्रीपादुकां पूजयामि ।

ऋषि श्रीनारद द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी

उद्यत्-सूर्य-सहस्त्राभां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् । पीताम्बरां पीत-प्रियां, पीत-माल्य-विभूषिताम् ।।

जङ्घा-युग्मे सदा पातु, बगला रिपु-मोहिनी । ‘स्तम्भये’ ति पदं ‘पृष्ठं, पातु वर्ण-त्रयं मम ।९

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